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रूंख सतसई

कांकड़ सुभर करेलड़ी, जाय'र देवै झोक।
ओठारू एकांत मां, पालै कुरियां पोख।।303।।

सुसियो मैंगल सैंधवौ, डांखिया डाढ़वाल।
वरी भालूक बरगड़ौ, बैठै वनां विचार।।304।।

भैस गाय वैपार रा, छोकी रूंखां छांय।
कांकड़ मां बैठा किता, भूल्यां अलगी भांय।।305।।

पोठा कर कर पाखती, कामू जमी करेह।
खाटण रूंखां खात री, सारी गरज सरेह।।306।।

पंखेरू
पतिवरता रैज्यूं पती, एकौ जीवण आस।
अद्री हंदै आसरै, विहग तियां विसवास।।307।।

बैठा व्रख मालै विहग, कूंज किलोलां कीन।
भगत जियां भगवान री, भगती मां लवलीन।।308।।

पत्री मालै पंछियां, इसड़ौ आसण कीन।
सिंघासण नरपत जियां, आय हुवै आसीन।।309।।

अंध्रप आलै आयनै, विहंग जावै बैस।
आसण ऊपर आयनै, जमियौ जिम जोगेस।।310।।

निनंग हूंता नीछटै, पंखेरू परभात।
अरि समरांगण आरहट, जेम गढां सूं जात।।311।।

असतर विहूण आरहट, विटप विंहग विहूण।
वित्त विहूणौ वांणियौ, कहवै सखरा कूण।।312।।

चमू मेल ससतर चवू,ं महिसुत सरवल मेल।
मेल मराल पाबासर, भगती धरम सुभेल।।313।।

तपतै ग्रीखम तावड़ै, लूवां री लपटांह।
बचण विहग द्वुम बावड़ै, छोकौ सरणौ छांह।।314।।

मांय बैठा मकान रै, कांपै मिनखां काय।
सरणौ दरखत सरदियां, चंची पत चिप जाय।।315।।

बरसालै घन बरसतां, दमकै दामणियांह।
व्रख पानां चिपिया विहग, बाला जिम पिव बांह।।316।।

कूंजै बिरछ कमेडियां, गिर कांकड़ गूंजाय।
रामनाम रिणकार रिख, गुफा जेम गरणाय।।317।।

करै विटप मालै विहग, निज री बोली नाद।
राट सभा जिम रागणी, सुणां गवैयां साद।।318।।

पूगै थाक्योड़ौ पथिक, सीधगांव री सोय।
दिन आंथ्यै खग दरखतां, एम आसरौ जोय।।319।।

दरखत हेटै देखवां, विहग तणी वींटांह।
रसा ऊपरै रालियौ, छापौ जिम छींटांह।।320।।

खूंद डाल पानां खसै, गन्दी वींटां गात।
सहन करै तरवर सदा, विहग तणा उतपात।।321।।

मानखौ
मिनखफणा बिन कै मिनख, छितरू कै बिन छांव।
कविता भाव विहूण कै, गौरी बिन कै गांव।।322।।

वसतर घर जद नीं वसा, पुरस आद पंपाल।
सदावंत रैय्यत रही, अंध्रप री औस्याल।।323।।

ढाण हुवा तन ढाकियौ, छितरू री छालांह।
अद्री रा औसांण नै, किम भूल्या कालांह।।324।।

फगत किया जद खाय फल, निनंग हेट निवास।
आदाकला सूं आदमी, रालक आया रास।।325।।

ठरकौ दरखत ठावकौ, सरणाई साधार।
तम्बू जांमक तांणियौ, बचवा तावड़ बार।।326।।

घन गरजत चपला चमक, मोटी छांटां मेह।
सरण देय कांकड़़ सदा, दरखत मिनखां देह।।327।।

समीर उतरादी सरद, सीली दावौ साथ।
कांकड़ मिनखां केरटा, रिच्छा राखण रात।।328।।

ऊंटां खीज्योड़ा अवर, पागल स्वान पसाय।
हिंसक पसु रिच्छा हुवै, चढ़ियां दरखत चाय।।329।।

काटै बिरछ कवाड़ियौ, सोचै नांही सूल।
एबी कुबदी आदमी, करै न भूल कबूल।।330।।

कतरां रूंखां रौ करै, बाड़ा करण विणास।
खितरू सारा खूटियां, अहली जासी आस।।331।।

दरखत देवणहार दत, क्यूं माडै कोसोह।
सोना री मुरगी समझ, मिणिया मत मोसाह।।332।।

लक्कड़हारा लागिया, द्वुमा लार दिन रात।
तौमम माड़ी तेवड़ी, घोलक भरबा घात।।333।।

वितकारण वौपारियां, कुण पालणियां केथ।
बाढ़ै आडैकट विटप, आला सूखा एथ।।334।।

सुद समीर नित समापै, तेवड़ फलां तकात।
हरियाली रूंखां हुवै, भेल भेल बरसात।।335।।

वेगा दरखत बाढ़ नै, तेड़ै एम तुठार।
ताखौ राखौ ताइयां, पड़ै न कुबदी पार।।336।।

पूजण रूंखां रो परम, वेदां मां विखियात।
सत तेता द्वार सहित, गरिमा रूंखां गात।।337।।

आखी कीरत उपनिसद, पुणिया लाभ पुरांण।
आंणै टांणै ऊपरां, जरूरत रूंखां जांण।।338।।

महिसुत कारण मानखौ, सोरा लेवै सास।
जीव चराचर जगत रा, दरखथ थांरा दास।।339।।

खेजड़ी
झाटी बोझी खेजड़ी, समी नांव संकेत।
तरू कलप मरुधर तणा, खेजड़ ऊभा खेत।।340।।

आयौ खेजड़ ऊपरां, धरम ग्रन्थ रौ ध्यान।
लिछमी ढिग वासौ लहै, भल विसनू भगवान।।341।।

खिमता वाली खेजड़ी, या पैदा री खान।
दरखत भारत देस रौ, मूल कदीमी मान।।342।।

तमिलिी 'पारम्बी' तवै, 'झंड' पंजाबी जांण।
'सिमरु' गुजराती सबद, तेलगु 'जम्बु' तांण।।343।।

कन्नड मां 'बन्नो' कहै, तकड़ौ दरखत तेम।
मिलत 'सु्‌न्दर' मराठियां, आदर खेजड़ एम।।344।।

बडी कठण व्है बीज री, पड़ ऊपरी पाक।
आवै दोरी अंकुरण, थिरा बिचालै थाक।।345।।

बरसालौ घण वरसियां, करै आसड़ो कार।
आधा पड़धा ऊगनै, बाकीव्है बेकार।।346।।

अंकुर डाली आवतां, हलकी राती होय।
वधणा मां होलै विटप, कसर न राखै कोय।।347।।

तीखा सीधा ताकता, हलका भूरा होय।
बोरड़ियां बांल जियां, कांटै जोड़ न कोय।।348।।

डटिया कांटा डालियां, अलगा अलगा एम।
चौकस ऊभा चौकियां, जचवै फोजी जेम।।349।।

गहरी छायां व्ही घणी, पत्तां छोटां पांण।
जुड़िया दस री जोड़ मां, उरधव मुख औसांण।।350।।

खावण मां खारा नहीं, चिलकै ना चिकणास।
पतला छोटा पानड़ा, ऊभा ध्रावां आस।।351।।

मजबूती मूसल जड़ां, ऊंडी जावै और।
चूसै नमी जमीन री, जिण सूं ताकत और।।352।।

जड़ सूं टोई तक जरू, पूरा कामूं पान।
थलवट किरसांणां थया, व्रख खेजड़ वरदान।।353।।

लगै टगै लम्बाइयां, इणरी मीटर आठ।
सिखर खुलौ व्है मुकट सम, थयौ खेजड़ी थाट।।354।।

गेहर डंबर होय घण, पूरौ जोबन पार।
खलकै चावी खेजड़ी, दरखत कांटैदार।।355।।

छितरू खेजड़ छांगणौ, ऊमर बरसां आठ।
तीन किलौ सूखौ तठै, थायलूंग रौ थाट।।356।।

ऊमर सागै व्है अधिक, लकड़ी कामू लूंग।
तीस बरस री औसतन, सौरभ ऊमर सूंग।।357।।

फलवै चवदै फीसदी, पत्तां मां प्रोटीन।
खेजड़ लूंग खवाड़तां, लखां ध्राव लवलीन।।358।।

ईंदण खेजड़ आपणै, खैरोई ना खेद।
पावां टेनिन पदारथ, मूल जड़ां मुस्तैद।।359।।

बालू बलती लू बहै, तिण पर तावड़ ताप।
कम बिरखां मां खेजड़ी, आपौ खोय न आप।।360।।

मौसम इसड़ा मांयनै, रे, बल जावै रूंख।
मरूधर मां ऊभा मसत, टोई खेजड़ टूंक।।361।।

बालण नै छरड़ी बहुत, थयौ लूंग रौ थट्ट।
चोरासी रै चौवटै, घम खेजड़ गैधट्ट।।362।।

अचांखचख हल रै अड़ै, पावं दुख गौपूत।
खेजड़ियां रा खेत मां, मूल हुवै मजबूत।।363।।

मरूधर उपयोगी महत, महिमा झाझी मेल।
खेतर सूखा मां खरी, कांकड़ खेजड़ केल।।364।।

दिस च्यारूं ही देखलौ, दीठ मीट दौड़ाय।
रालक राजस्थान मां, पग पग खेजड़ पाय।।365।।

तपती लू अर तावड़ौ, दावौ सीली देस।
रूखायीत वाली खेजड़ी, हरित रहै हरमेस।।366।।

महती खेजड़ मानखौ, जांणत पूजा जोग।
जड़ सूं लै टोई जरू, इणरौ व्है उपयोग।।367।।

डूंजां सूंटां मां डटी, जबर खेजड़ी जांण।
जड़ मूसल आकार री, पड़ै न आंधी पांण।।368।।

ऊंडी खेतां एण री, जड़ सीधी ही जाय।
हेटै ऊगी फसल हित, पेड़ न हांण पुगाय।।369।।

पत्तां सूं पाणी झरै, बूठंतै बरसात।
नामी फसलां नीपजै, करे कार ज्यूं खात।।370।।

कातोसरौ अवेरियां, ढूके खेजड़ ढाण।
दावा पैली छांग दै, कामगरौ किरसांण।।371।।

छितरू छेटी ऊगिया, इण सूं सूख्या और।
थलवट इम द्वुम थाविया, जठै न बिरखा जौर।।372।।

तेड़ां छोडां बिच तकण, रालक खेजड़ राज।
कर फाटै जिम करसणी, करतां सरदी काज।।373।।

पाछा खेजड़ पांगरै, मरूधर चेती मास।
ओढ़ै हरियल औरणौ, प्रोढा जिम पिय पास।।374।।

ऊन्हालै ऊभा इयां, खेजड़ तपता खेत।
तपियौ जेम कपीस तन, हरी नांव रै हेत।।375।।

खेतां ऊभा खेजड़ां, माड़ी केम मठोठ।
माजी जेम समाज रा, रे देवण कुल ओट।।376।।

रिंद रोही मां रात रा, करै खेजड़ा कार।
जेम बूढिया वंस री, छै लज ढाकणहार।।377।।

कामू नामूं कायमी, कुमक कुजरवै काल।
भालै औ भगवान ज्यूं, पालै वित रिछपाल।।378।।

पांच किलौ लग दै परी, सांगरियां हर साल।
लकड़ी खेजड़ लार ही, टिकवै सहरी टाल।।379।।

तपती लूवां तावड़ै, थयौ खेजड़ी थाट।
समरांगण जिम सूरम, दहै न अरियां दाट।।380।।

देवण ईंडा देख नै, आय'र लेवै आल।
गुफा जेम पंछी गिणै, खेजड़ियां खोखाल।।381।।

साग सवादौ सांगरी, लेवौ खावण लाब।
वात रोगिया,ं वासतै, खोखा बडा खराब।।382।।

सूखी बिकै दिसावारां, भल मनचाया भाव।
कखावण हंदा लै खरा, सांगरियां रा साव।।383।।

खोखा पाकै खेजड़ी, जेठ मास मा जाय।
ओठारू गाडर अजा, खोखा बेहतखाय।।384।।

जाण्या बत्ता जीव सूं, खेजड़िया रा खेत।
हां करता सै होयगा, हाजर रिच्छा हेत।।385।।

वोटी वोटी वाढ़तां, ना तजियौ निज नेम।
तेसट समेत तीनसौ, अमर 'इमरत' एम।।386।।

करडाली हेटी करै, सरदा सूं सतकार।
पर पेडी अविचर पखां, द्वुम खेजड़ दातार।।387।।

हरखै हरियल खेजड़ा, झड़ बिरखा री जोय।
मिलियां रघुवर मूंदड़ी, हरख सिया जिम होय।।388।।

खरच उगावण खेजड़ी, पसुवां विपदा पाज।
तूं मरुधर रौ कल्पतरू करै नमन कविराज।।389।।

छानड झूंपड़ छावतां, इणरौ देण अडांण।
थट खूंटा थिर थोवली, जरूरत खेजड़ जांण।।390।।

पूटी गाड्यां पूटणी, पड़वै चाढ़ण पाट।
खेजड़ री पग पगखरी, कमतर करणी काठ।।391।।

बेर बडेरी बोरड़़ी, जगत नांव द्वुम झाड़।
सघन समुसक जलवाय मां, विकसै संबल वाड़।।392।।

हालत पैदा होण री, ना खाडै नमकीन।
टीलां रेती मां टिकण, दुखद बोरड़ी दीन।।393।।

प्रमुख दोय प्रजातियां, बोरड़ियां झड़ बेर।
अरध सुसक जलवाय घर, चंगी लीली चैर।।394।।

झुकता छोटा झाड़का, डीगा मोटर दोय।
काया कांटेदार सूं, साखां रिच्छासोय।।395।।

इलसूं पौधौ ऊगती, रचै बेंगणी रंग।
राख रंग रै रासतै, चमड़ी भूरी चंग।।396।।

ऊपर धोलौ आवरण, देखौ ढाकी देह।
फूलै अर गहरौ फलै, मोलौ रहियां मेह।।397।।

पेखां छोटी पत्तियां, काया अण्डाकार।
विरताकार दीरध विकस, दीप दांतेदार।।398।।

अनुपरमीय कंटक अवस, जोड़ां मां जबरेल।
हित पतलौ सीधौ हुवै, माड़ौ दूज मुड़ेल।।399।।

अड़ियां उधड़ै चामड़ी, तीखौ कांटौ ताय।
जेम सरीरां जांण नै, (कोई) घावां लवण लगाय।।400।।

बीड़ां खेतां बीच मां, लडै अणूतौ लाड।
माठां ऊपर माचणा, जबर झाड़का जाड़।।401।।

पन्ना 26

 

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